इस दर्द को वह समझे जो हो इश्क़ का असीर
जिस ईद में कि यार से मिलना न हो 'नज़ीर'
आज आगरे की ईद याद आ गयी और साथ ही याद आयी ईद लखनऊ की और ईद हैदराबाद के चारमिनार की. हमारे आगरे के नज़ीर अकबराबादी जो ग़ालिब के गुरु भी थे कहते हैं -
शाद था जब दिल वह था और ही ज़माना ईद का
अब तो यक्सां है हमें आना न जाना ईद का
दिल का खून होता है जब आता है अपना हमको याद
आधी-आधी रात तक मेहंदी लगाना ईद का
आंसू आते हैं भरे जब ध्यान में गुज़रे है आह
पिछले पहर से वह उठ-उठ कर नहाना ईद का
... ...
दिल के हो जाते हैं टुकड़े जिस घड़ी आता है याद
ईदगाह तक दिलबरों के साथ जाना ईद का
ईद मुबारक़!
Friday, September 10, 2010
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