Friday, September 25, 2009

तस्वीरें मन को भातीं हैं

आज ऐसे ही कुछ पुरानी तस्वीरों पर नज़र पड़ी. तस्वीरें - नयी हों या पुरानी हमारे मन को भातीं हैं. कुछ याद कराती हैं और कुछ एहसास दिलातीं हैं - यादें अगर भीनी भीनी तो एहसास मीठा सा और थोडा सा कुछ खोने का.



तस्वीरें हैं फूलों की घाटी की. घाटी वैसे तो साल में अक्सर बर्फ से ढकी रहती है पर जून से अक्टूबर के दौरान वहाँ जाया जा सकता है. हम करीब सात आठ साल पहले जून के महीने में वहाँ गए थे - रास्ता बंद था और जगह जगह ग्लेशियर थे. तो हम अन्दर तक तो नहीं जा पाए लेकिन इसी बहाने घांघरिया में दो तीन दिन ठहरे और काफी फोटोग्राफी की.

Sunday, September 20, 2009

लीला

लीला में सौंदर्य है, लीला में विविधता है. विविधता है शब्दों में, अर्थों में और भावों में. साथ ही साथ विविधता है उनकी अभिव्यक्ति में और अनुभूति में. अब चूँकि अनुभूति की विविधता है तो भई लीला में खोना होगा, डूबना ही होगा...

Wednesday, September 16, 2009

हमारी भतीजी को आखिरकार एक नाम मिल गया - चार्वी.  वैसे वो भी सोच रही होगी इतने दिन बाद एक नाम मिला - पापा के पास नाम है, मम्मी के पास नाम है, नाना नानी दादा दादी यहाँ तक की घर के आस पास जो चिडिया पक्षी वगेरह हैं सबके पास नाम है .... नाम उसे पसंद है कि नहीं इसके लिए हमें तब तक इंतज़ार करना पड़ेगा जब तक वो खुद भाषा विशारद ना बन जाए -- वैसे हर बच्चा अपने आप को भाषा विशारद ही समझता है .... और एक तरह से देखा जाए तो होता भी है -- यह बात दीगर है कि वो व्याकरण विद् ना हो या फिर अपने खुद के व्याकरण में ही विशारद हो :)

Sunday, September 6, 2009